“उसके” दरवाजे बंद हैं ।….
तकदीर का सितम है ,
या वक्त की कोई साजिश ।
जो मेरे ख्वाबों को मुकम्मल ,
होने में लगा रखी है बंदिश ।
कौन है जिसे मेरी खुशी ,
रास नहीं आती ।
कौन है वोह दुश्मन ,
मैं समझ ही नही पाती ।
कौन है जो मेरे अरमानों को ,
रंग भरने से रोक रहा है?
कौन है वोह जो मेरी जिंदगी को ,
सुनी सुनी कर रहा है।
मैं पूछना चाहती हूं उनसे ,
आखिर क्या है ये नाराजगी ?
और कब तक चलेगा इसका सिलसिला,
कब इसकी इंतेहा होगी ?
इंसान के रूप में मेरे सामने होते ,
तो मैं इनकी मान मनौव्वल करती।
पास बैठती इनसे बातें करती ,
और इनकी सेवा भरपूर करती ।
मगर यह इंसान नही है ,
यह दोनो खुदा के कायदे हैं।
कोई कैसे करे शिकवा इनसे ,
इंसान ना होने के बड़े फायदे हैं।
मगर खुदा तो सुन सकता है ,
उसके का क्यों बंद है ?
पूछना चाहती हूं मैं उसी से ,
क्या इन साजिशों पर इनका हाथ है ?
कैसे पूछूं मगर उससे ,
उसके भी दरवाजे बंद है।