“उसकी यादें”
वो अधूरी इबादतें,
वो टूटी तस्बीह याद आती हैं।
जब भी ख़ुद की याद आती हैं,
मुझे उसकी याद आती हैं।
याद आता हैं मेरा रोता चेहरा,
हँसी उसकी याद आती हैं।
याद आता है भरोसा मेरा,
वो बातें झूठी याद आती हैं।
याद आता हैं तरसना मेरा,
उसकी मतलबपरस्ती याद आती हैं।
याद आता है मेरा वजूद,
वो खोखली हकपरस्ती याद आती हैं।
याद आता है कलेजा मेरा,
उसके चूरें छल्ली याद आती है।
वो मुसाफिरखाने सा दिल मेरा,
खानाबदोसी जिंदगी
उसकी याद आती है।
याद आता है मैं पागल थी,
जब हकीकी जमीं याद आती है।
याद आता है सब भूलना,
और फिर, भूले बातों की याद आती है।
जब भी खुद की याद आती है,
मुझे उसकी याद आती है।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)