उसकी जिन्दगी –
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निम्न मध्यवित्त माहौल में वह पली.
जन्म से मृत्यु तक जली केवल जली.
जिस आग में जली वह कभी नहीं जला.
उस युवती को गया पर बुरी तरह जला.
जन्म हुआ तो छा गया अचैतन्य आतंक.
हो गये थे स्वजन,पुरजन मौन ही सशंक.
न बंटे बताशे, न बंटे लड्डू, न बजे बाजे.
झूठी थी हँसीं सारी खुशियाँ क्या मनाते?
वह तो उपेक्षिता पली ही जननी भी रही.
जन्म दे उसे वह भी हो गयी अनछुई सी.
न पाली गयी गाय न खरीदा गया ही दूध.
बेटी मैं मानी गई,ली न गई कर्ज और सूद.
शैशव मेरा कहीं धूल में अड़े,पड़े बीते.
कैसे था बीता? तेरा गौरवमयी सीते.
किसीको गुदगुदाया नहीं ठुमक मेरा चलना.
किलक-किलक उठाना मेरा रोना,मुस्काना.
लोग झुंझलाते रहे,क्या-क्या बतियाते रहे!
माई झुंझलाई पर कारण कुछ और रहे.
गत जो बनेगी जीवन भर,वह,उसे डराती रही.
ज्ञात था सब व्यथा वो,वह भी तो सहती रही.
यातना जो भुगतूंगी वह उसे थर्राती रही.
कोसती जन्म को मेरे इसलिए सदा ही रही.
न कोई थपकायेगा,न कोई सुलाएगा.
चीखूंगी रातों में जब न कोई चिपकायेगा.
बेटा होती दादी की गोदी मेरे लिए सुरक्षित.
दादा जी तब कभी न कहते मुझे अवांक्षित.
बाबूजी दुलराते हैं पर सहम-सहम जाते हैं.
मेरी छोटी शैतानी पर लोग बहुत गर्माते हैं.
क्यों जन्मी तुम मरी,निगोड़ी माई रोती है कहती है.
उसका तो जो बीता,बीता;भाग पे मेरे वह रोती है.
दादी का गहना बिकता या खेत का कोई टुकड़ा.
गाय खरीदी जाती एक होती यदि मैं भी बेटा.
कभी नहीं मेरी आखों के आंसू धरती पर गिरते.
तुरत-फुरत अंगुली, आंचल में,ये रोक लिए जाते.
पर,हो न सका ये,हो न सकी मैं पैदा होकर बेटा.
बस इसीलिए सारा जीवन गया मेरा कान उमेठा.
बच्चे जब स्कूलों में पढ़ते थे मैं रही बीनती गोबर.
जंगल से लकड़ी,कंद,मूल,फल,फूल बहुत रो-रोकर.
खेतों में कचिया लिए काटती फसल,पली हूँ मैं तो.
घुटने भर कीचड़,कादो में धान रोपती पली हूँ मैं तो.
फूंक-फूंक चूल्हे,ऑंखें हैं पथराई मेरी.
ढोते-ढोते मीलों से जल, छाले पड़े गये मेरी.
ताने सुन-सुन मैंने यह जीवन कसैला काटा है.
दृष्टि बदले लोगों के या यह जीवन बस चांटा है.
हुई सगाई बालापन में,हुई जवां तो हो गई विधवा.
सप्तरसी होगा यह जीवन; मेरा तो बस रहा कसैला.
कैसे इठलाती,इतराती किस पर;दया चाहते जीवन कट गयी.
मैं तो मेरे बाप के घर में,मेहनत किया,मजूरिन बन गयी.
सीख लिया अपरिपक्व उम्र में गोल बेलना रोटी मैंने.
लीपा,पोता माटी का घर;गंदा व्यक्तित्व रह गया न?
अस्मत खूब बचाया है पर,वजूद ज्यों टूट गया ही.
क्यों वजूद के साथ;हमारा बच सकता अस्मत है भी.
जो शिक्षा जो देता ताकत मेरा भी क्यों हो नहीं सकता?
कस्तुरी जो पास हमारे क्यों नहीं मेरा हो है सकता?
मुझे पढ़ाने,शिक्षा देने क्यों नहीं कोई आगे आया.?
क्यों लोगों ने किन लोगों ने शिक्षा को व्यवसाय बनाया?
बापू कि प्यारी बिटिया मैं, बनकर रह गई सिर्फ बातों में.
जो कुछ सचमुच मिला अगर तो मिला सिर्फ लड़का हाथों में.
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