उसका बेटा
लघुकथा
उसका बेटा
*अनिल शूर आज़ाद
अपने पुत्र कलुआ को मुंशी-पुत्र का ‘घोड़ा’ बने वह देखती रही। एक..दो..दस..ग्यारह..और फिर बारहवां तसला उसने..मिस्त्री की परात में उड़ेला ही था कि बुरी तरह थक चुका कलुआ रो उठा..और अधिक ‘सवारी’ देने में असमर्थता के दण्डस्वरूप मुंशी-पुत्र ने उसे पीट डाला था।
बेटे को दिलासा देने वह आगे बढ़ी ही थी कि एकाएक मुंशी वहां आ पहुंचा। “जी..लगता है खेलते हुए गिर पड़ा..” मुंशी का तमतमाया चेहरा देखकर गरीब मजदूरिन मां से सच कहते ना बना।
“नहीं सम्भलता तो खबरदार जो..इस हरामी को आइंदा यहां लाई तो..!” धमकी देकर मुंशी आगे बढ़ गया। एक बेबस दृष्टि बेटे पर डालकर, अभागन चुपचाप गारा लाने चल दी।
मां की विवशता से अनजान कलुआ बेचारा, बुक्का फाड़कर रोता ही रहा..
(रचनाकाल : वर्ष 1982)