Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Oct 2019 · 1 min read

उसका बचपन झांक रहा था

आज एक होटल से गुजरी,
एक हकीकत से यूं रूबरु आज मैं
क्योंकर हुई।
मैले चीथड़े और मैला तन जैसे तिरस्कृत हो कोई ।
यूं तो बर्तन मांज रहा था ।
बेवश बचपन झांक रहा था
आंखों में धूमिल सा सपना , प्रत्युत्तर सा मांग रहा था।
झूठे बर्तन की कालिख में, उसका भविष्य झांक रहा था।
वही शादाब है यह तो प्यारा,
जिसको मै कब से ढूंढ रही थी।
कक्षा से गायब रहता है,
अभिभावक से जूझ रही थी।
आने वाले हर बच्चे से,
पता मैं उसका पूछ रही थी।
जो उम्र थी पुस्तकों में बाल पहेलियां सुलझाने की।
बाल्यावस्था उस ढाबे में रोजी-रोटी ढूंढ रही थी
कोमल नरम मुलायम कलाई पतीले से जूझ रही थी।
उसकी आंखें बेचैनी से, चुप चुप मुझको देख रही थी।
साहस जुटाया ,हक सा जमाया।
ढाबे के मालिक से पूछा,
किसने भेजा इसे काम पर।
किसने इसका ख्वाब चुराया,
शिक्षा का अधिकार चुराया।
यह सुनकर मालिक गुर्राया।
यूं ही नहीं रखा हूं इसको,
सारा पैसा पहले चुकाया।
माता-पिता ने इसको बेचा।
सुनकर मेरा दिल भर आया।
रेखा जब तक यूं ही बचपन,
ढाबों और कारखानों में।
बेबस और मजबूर रहेगा।
मेरा शिक्षक यूं ही तलाश कर
मायूस होकर भटकता रहेगा।
मेरे भारत का धूमिल भविष्य, उजाले को तरसता रहेगा।
एक नहीं अनगिनत शादाब,
यूं ही खोजे जाते रहेंगे। ये बेचारे छोड़ किताबें रोजी की तलाश में जाते रहेंगे।
इस बिंदु पर कोई बताएं कैसे होगी शिक्षा पूरी।
यहां प्राथमिकता रोजी की या फिर ,
शिक्षा की ही होगी।

Language: Hindi
1 Like · 331 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जिस दिन आप दिवाली के जगह धनतेरस को मनाने लगे उस दिन आप समझ ल
जिस दिन आप दिवाली के जगह धनतेरस को मनाने लगे उस दिन आप समझ ल
Rj Anand Prajapati
अंतिम सत्य
अंतिम सत्य
विजय कुमार अग्रवाल
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
गीत - मेरी सांसों में समा जा मेरे सपनों की ताबीर बनकर
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
संगीत और स्वतंत्रता
संगीत और स्वतंत्रता
Shashi Mahajan
इन आँखों ने उनसे चाहत की ख़्वाहिश की है,
इन आँखों ने उनसे चाहत की ख़्वाहिश की है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
बुरा ख्वाबों में भी जिसके लिए सोचा नहीं हमने
Shweta Soni
भरे मन भाव अति पावन, करूँ मैं वंदना शिव की।
भरे मन भाव अति पावन, करूँ मैं वंदना शिव की।
डॉ.सीमा अग्रवाल
हंस भेस में आजकल,
हंस भेस में आजकल,
sushil sarna
अपना सम्मान हमें ख़ुद ही करना पड़ता है। क्योंकी जो दूसरों से
अपना सम्मान हमें ख़ुद ही करना पड़ता है। क्योंकी जो दूसरों से
Sonam Puneet Dubey
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
Ravi Prakash
सच
सच
Neeraj Agarwal
मन का मिलन है रंगों का मेल
मन का मिलन है रंगों का मेल
Ranjeet kumar patre
बहुत मुश्किल होता हैं, प्रिमिकासे हम एक दोस्त बनकर राहते हैं
बहुत मुश्किल होता हैं, प्रिमिकासे हम एक दोस्त बनकर राहते हैं
Sampada
प्रभु शुभ कीजिए परिवेश
प्रभु शुभ कीजिए परिवेश
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
मृत्यु शैय्या
मृत्यु शैय्या
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
I may sound relatable
I may sound relatable
Chaahat
कभी-कभी नींद बेवजह ही गायब होती है और हम वजह तलाश रहे होते ह
कभी-कभी नींद बेवजह ही गायब होती है और हम वजह तलाश रहे होते ह
पूर्वार्थ
आप सभी को ईद उल अजहा मुबारक हो 🌹💖
आप सभी को ईद उल अजहा मुबारक हो 🌹💖
Neelofar Khan
"जीवन का प्रमेय"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
Dr. Rajeev Jain
फूल कभी भी बेजुबाॅ॑ नहीं होते
फूल कभी भी बेजुबाॅ॑ नहीं होते
VINOD CHAUHAN
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
Kumar lalit
हम क्रान्ति तो ला चुके हैं कई बार
हम क्रान्ति तो ला चुके हैं कई बार
gurudeenverma198
प्रदीप छंद
प्रदीप छंद
Seema Garg
خود کو وہ پائے
خود کو وہ پائے
Dr fauzia Naseem shad
भावों का भोर जब मिलता है अक्षरों के मेल से
भावों का भोर जब मिलता है अक्षरों के मेल से
©️ दामिनी नारायण सिंह
हारा हूं,पर मातम नहीं मनाऊंगा
हारा हूं,पर मातम नहीं मनाऊंगा
Keshav kishor Kumar
*और ऊपर उठती गयी.......मेरी माँ*
*और ऊपर उठती गयी.......मेरी माँ*
Poonam Matia
🙅न्यू डेफिनेशन🙅
🙅न्यू डेफिनेशन🙅
*प्रणय*
Loading...