उसका प्रेम
एक दिन
सागर ने
नदिया को रोककर पूछा
“तुम मुझसे मिलने को दौड़ी-दौड़ी
क्यों आती हो ?
तुम मुझसे मिलने को
भागी भागी क्यों आती हो ?
क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं
या कोई और गम सताता है ”
सुना इतना नदिया ने
सहमी
फिर इंगित करती हुई बोली ,
“वह देखो प्रियतम ….वे जो तुम्हारे तट पर
नहा रहे हैं उन्हें मानव कहते हैं
वे क्या जाने प्रेम का अर्थ
बस स्वार्थ के मद में वे मस्त रहते हैं
हो न जाए तुम पर भी
कहीं संगत का असर
और फिर विरह में न मुझे जिंदगी
करनी पड़े बसर
बस यही सोच कर
मैं मिलने को तुमसे दौड़ी दौड़ी आती हूं
भागी भागी आती हूं ”
कहा इतना नदिया ने
और
सिर अपना झुका लिया
इठलाया सागर अपने प्रेम पर
वह झट उठा
और
उसे गले से लगा लिया।।