*उषा का आगमन*
*उषा का आगमन
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देख रहा था दूर छितिज पर,
फैल रही उषा की वह लाली,
कितना निश्चल हो फैली रही थी,
प्रकृति मनोरम किरणों की वो थाली,
प्रातः की इस मनोरम बेला में,
कलियाँ अभी खिलीं नहीं थीं,
बाट जोहती नव उषा की,
खिले पुष्प भी निहार रहे थे,
कब आएं किरणें पीने को,
जीवन की यह अमृत प्याली. 01
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कलियों के मुख पर फैली ओस,
छलका रही थी मधुर रसों की,
मन अविभूत करती मदिरा न्यारी,
ठिठक गया मैं देख दृश्य यह,
कैसी अद्भुत सुन्दरता थी चहुँ ओर. 02
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पर कुछ और पलों का मेहमान था,
यह सब कुछ मन भावन वा सुन्दर,
जब तक थी सूरज में मधुर लालिमा,
और मन्द बयार में भरी थी शीतलता प्यारी,
मन को हरने सम्पूर्ण प्रकृति भी थी,
उन पलों में वारी न्यारी . 03
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फिर जैसे-जैसे धुप चढ़ेगी,
उड़ जायेगी कलियों पर फैली,
स्वर्गीय ओस की स्वणिम लाली,
खिले पुष्प की पंखुड़ियां तब,
बिखेरींगी सुगंध की महिमा न्यारी,
खिंच कर आ मंडराएंगे भवरे न्यारे,
मधुर संगीत के गुंजन से गूँज उठेगी,
तब प्रकृति की यह सुन्दरता न्यारी. 04
रवीन्द्र के कपूर *