भोर की लाली
विधा- गीतिका
2122 2122 2122 212
भोर की सुषमा जगी है व्योम में कलरव हुआ |
नभ हुआ रक्तिम दिवाकर ने धरातल को छुआ ||
तटतड़ागों में नवोदक कमलदल अब खिल रहा |
बह रहा है नीर नद् में नाद बन कलकल महा ||
दूर पंछी उड़ चले हैं रात्रि का तम हट चुका |
स्वच्छ वातायन हुआ है अप्रतिम लगती छटा ||
नींद को अब त्याग दे तू ! मन तपोमह से जुड़ा |
दुरित दुख से मुक्त होकर मोह के बंधन छुड़ा ||
जिस डगर जाना बटोही लक्ष्य उस पथ को बना |
लोकमंगल के लिए कर इष्ट की अभ्यर्थना ||
जगदीश शर्मा सहज