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12 May 2024 · 1 min read

उल्लाला छंद

मन से आखिर जो करे,
कोई भी निज काम को।
मजदूरी पूरी मिले,
संतोषी हर शाम को।।

ताका-झाँकी छोड़ दे,
बहुत बुरी यह बात है।
दिन तो इसमें कट गया,
लेकिन आगे रात है।।

अपनी-अपनी कह रहें,
सुनता आखिर कौन है?
अनपढ़ चिल्लाता सदा,
ज्ञानी देखो मौन है।।

समय विषम होता नहीं,
सदा अभी यह जान लो।
यदि आई है रात तो,
दिन भी होगा मान लो।।

सेवा से मेवा मिले,
मिले मान-सम्मान भी।
सच्ची हो यदि साधना,
मिल जाते भगवान भी।।

खुद से मंथन जो करे,
सच में वह विद्वान है।
सुनता है हर बात को,
चुनता केवल ज्ञान है।।

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