उल्फ़त है कहाँ?
आज अपने ही सुजन कितने दलों में बँट गये,
कुछ सहज गद्दार लोगों से ही नाहक पट गये!
जिनका परिचय वास्तव में गोष्ठियों से ही बढ़ा,
मंच क्या उनको मिला वह गोष्ठियों से हट गये!
साथ देने का वचन जो नित हमें देते रहे,
आज वह अपने ही वादों से है लगता नट गये!
अब हमारे बन्धुओं के दिल में उल्फ़त है कहाँ,
इस कठिनतम दौर में ज्यों दिल सभी के फट गये!
कुछ को सच का आइना हमने दिखाया क्या ‘सरस’,
ऐसा लगता वह फुदककर आज हम से कट गये!
* सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)