उलझे धागे
“उलझे धागे”मन की उलझन को धागों की उधेड़बुन की तरह सुलझाने का प्रयास कर रही है।कैसे आप पढ़ कर प्रतिक्रिया दें।
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उलझे धागे”
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कभी खोले हैं
उलझे धागे
उनको लपेटा हो
खोल कर फिर से
ढूँढा हो एक सिरा
और पहुँचे
सुलझाते सुलझाते
दूसरे सिरे तक
कहीं बीच में गाँठ
पड़ जाये तो
खोल देते हो
उसी वक़्त
तरकीब लड़ाते हो
या फिर उलझा देते
सुलझा सिरा भी
बड़ा साधना पड़ता है
खोलने को गाँठें
अपने आप को
सिरे से सिरा मिलाने को
एक दूसरे को अपनाने को
आख़िर सिलना होता है
फटे को,किसी उधड़े को
ताकि नंगापन नज़र न आये
लगे ऐसे कि ठीक ठाक है
सब कुछ
हालाँकि सिलने को
लगाना होती है गाँठ
दो सिरों को जोड़ने के लिये
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राजेश”ललित”शर्मा