उलझी हर बात क्या करे कोई
उलझी हर बात क्या करे कोई
बिगड़े हालात क्या करे कोई
पिघले जज्बात क्या करे कोई
होगी बरसात क्या करे कोई
जब नहीं है बहार का मौसम
झड़ गये पात क्या करे कोई
रूठ ये चाँद ही गया है जब
काली है रात क्या करे कोई
करवटें वक़्त ने बदल ली यूँ
मिल गई मात क्या करे कोई
‘अर्चना’ है विधान ये विधि का
मौत की बात क्या करे कोई
22-11-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद