उलझन
उलझन भी ज़रुरी है,
सब सुलझाने के लिए।
हर शख्स ज़रूरी है,
हर राज़ दफनाने के लिए।
बेकरार मै नहीं सिर्फ ,
कोई और भी है,
किस्मत आज़माने के लिए।
कुछ राज़ अक्सर रहेते है खामोश,
गुज़रा पल याद दिलवाने के लिए।
राज़??
राज़ यानी???
जो पढ़े ना जा सके
जो लिखे ना जा सके
जो बोले ना जा सके
जो सुने ना जा सके
ऐसे राज़ भी होने चाहिए
यारा सबकी ज़िन्दगी में कुछ राज़ भी होने चाहिए |
है मानना मेरा ये
हर बात सबको बताया नहीं करते
अपनी आबरू यूँ ही लुटाया नहीं करते
कीमत रख दी जाए अगर शब्दों के तुम्हारे
तब भी हर शब्द से हर महफ़िल को सजाया नहीं करते |
मैं उलझन में,
उलझन पर लिख रही हूँ बहुत कुछ,
जानती हूँ हर दरख़ की बदकिस्मती
फिर भी दरवाजों की तारीफे लिख रही हूँ मै,
सौ लानत कमा , नजाने क्यों
तहज़ीब – ओ – ईमान की बाते कर रही हूँ मै ,
लफ्ज़ बांधे है कुछ मैने ,
और कुछ बांधने बाकी है,
इन लफ्जो को कोरे कागज़ पर लिख रही हूँ मै,
कहने को कहती हूँ वो , जो आए मन में
लिखने को लिखती हूँ वो, जो आए मन में
मगर अब सब कुछ कहना और लिखना
मेरे मन में नही आता,
सब है शायद सही इस कारण,
खुदकी बनाई उलझन में खुद ही उलझ रही हूँ मै।।२
❤️ सखी