उलझन में मध्यम वर्ग!
आज के परिवेश में जब देश विभिन्न प्रकार की समस्याओं से जूझ रहा है, आर्थिक मंदी, रोजगार की कमी, व्यापार में शिथिलता, महंगाई में वृद्धि ऐसी परिस्थितियां हैं जिनकी सबसे ज्यादा मार से यही मध्यम वर्ग प्रभावित हुआ है!
कोरोना की महामारी से भी सबसे ज्यादा पीड़ा इसी वर्ग के हिस्से में आई , घर के कमाने वाले इस बीमारी से जान गंवा बैठे हैं, परिवारों के आर्थिक हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं, थोड़ी बहुत जमा पूंजी भी इस बीमारी की भेंट चढ़ गई, खाने के लाले पड़ गए! हालांकि सरकार ने पांच किलो अनाज देकर पेट की आग को कम करने का प्रयास जरूर किया है किन्तु यह मदद कारगर नहीं है, परिवार के बालिग सदस्य को रोजगार के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें खैरात की राशन से मुक्त होकर स्वयं मेहनत करके कमाने और परिवारों का भरण पोषण करने का नैतिक कर्तव्य निभाने का अवसर मिले।
आज जब सबसे ज्यादा जरूरत रोजगार की है तब उधोग के घरानों ने छंटनी करके अपने कामगारों, कर्मचारियों को घर पर बिठा दिया है, वह लोग जो कभी उनके काम के हुआ करते थे, आज वह उनके लिए किसी काम के नहीं हैं!कम से कम कर्मचारियों से अधिक से अधिक काम लिया जा रहा है और बेबस कर्मचारी नौकरी बचाए रखने के लिए समय से ज्यादा समय देकर भी असहज स्थिति में बने हुए हैं छंटनी की तलवार उन्हें अपने ऊपर लटकी हुई दिखाई देती है, वह हर हाल में अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए हर संभव कोशिश में जुटे हुए हैं, कभी यही कर्मचारी अपने संगठन और अपने अन्य स्थानों पर नौकरियां मिल जाने के कारण अपने नियोक्ताओं को अपनी बेतन वृद्धि एवं सुविधाओं के लिए देने को मजबूर करने की स्थिति में रहते थे, आज मन मसोस कर मालिकों की हर जायज नाजायज मांगों को मानने के लिए मजबूर हो गए हैं!
इस वर्ग की एक और दुविधा यह है कि यह ना तो विरोध करने की स्थिति में है ना ही किसी के साथ साझा करने के स्थिति में, यह वह वर्ग है जो संख्या की दृष्टि में काफी ज्यादा है फिर भी यह अपनी कोई राय बनाने की कोशिश करने में कामयाब साबित नहीं हो पा रहा है, अपितु समाज में जो कहा सुना जाता है यह भी उन्हीं की हां में हां मिलाते हुए अपनी पीडा को छुपाने की कोशिश में लगा हुआ है! इसके सामने एक और समस्या यह भी है कि जब अधिकांश लोग धर्म के आधार पर विभाजित होने को अग्रसर है यह भी अपनी पहचान हिन्दू/मुस्लिम के खांचे में समेटते हुए जाहिर करने में बढ चढकर सहभागिता करने लगा है!
यह जानते बूझते हुए भी कि धर्म/संप्रदाय हमारी नीजि जिंदगी का हिस्सा है हमारे जीवन जीने की पद्धति का अहम भाग है, ना कि रोजगार के सीमटते हुए ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने का एक उपक्रम के रूप में प्रयुक्त किए जाने वाला औजार मात्र! वह देखा देखी अपने आसपास के उन लोगों का अनुसरण करने लगता है जिनके समक्ष जीविका उपार्जन के प्रर्याप्त साधन मौजूद हैं, वह अपने निहित स्वार्थों के लिए अपने प्रभाव में लेकर एक तरह से अपना एजेंडा फैलाने में कामयाब हो रहे हैं, और मध्यम वर्ग का वह आम इंसान जो दुविधा में अपनी कोई राय नहीं बना पाया है वह अपने से सबल तबके की राय को ही उचित मानकर उनका अनुसरण करने को चाहे अनचाहे स्वीकार कर ले रहा है !
ऐसे में एक ऐसा वर्ग जो देश में सबसे ज्यादा संख्या में मौजूद है और हर तरह की गतिविधियों में उसकी हिस्सेदारी अहम है जो देश के आर्थिक विकास में योगदान करने में उत्पादन करने से लेकर उपभोक्ता के रूप में अपनी भागीदारी निभा रहा है वही आज दूसरों पर निर्भर होकर रह गया है! यही दूविधा /उलझन उसके मार्ग की सबसे बड़ी बाधा के रूप में खड़ी है, इससे निजात पाने के लिए जो हौसला उसे अपने में तैयार करना है कर नहीं पा रहा है।