उलझन – अजय कुमार मल्लाह
मैं तो लड़खड़ाता हूँ तु चलता चाल में होगा,
नहीं मालूम है मुझको तु किस हाल में होगा।
सपने जागती आँखों से देखने की आदत है,
सोचता हूँ कि तु अब भी मेरे ख़्याल में होगा।
तुने मुझे लिखा था वो जो एक इकलौता खत,
रख के हूँ भूल गया जाने किस रूमाल में होगा।
मैं तो सोच के डरता हूँ क्या जवाब देगा तु,
जब मेरा ही ज़िक्र तुझसे हर सवाल में होगा।
जानता हूँ नामुमकिन है लौटना तेरा “करुणा”,
दिल उलझा नए रिश्तों के जंजाल में होगा।