उलझनों की भूलभूलैया
कई चित्र है कई दृश्य है
एक दूसरे से उलझे हुए
अपनी कथा के।
छुड़ाऊ किसी एक को,
सब साथ में और उलझ जाते हैं।
भागूॅ छुड़ाकर पीछा किसी एक से,
सब साथ में दौड़े आ जाते हैं।
देखता हूॅ दृश्य घटना में सिमटकर
और उलझते जा रहें है।
काल, दो क्षण हर्श में
बच्चे की तरह मुझे गोद में लेकर
मुझसे खेल रहा है।
थोड़ी ही देर में, देखता हूॅ कि
वह मुझे कधें पर उठाकर
ले जा रहा हैं
इस जंगल से दूर
दूसरे जंगल में।