उलझनें
हर खुशफ़हमियों से अब हमें, मुँह मोड़ना होगा।
मुझे वह बिंधते हैं ऐसे, कि बन्धन तोड़ना होगा।।
ये रंगत रिश्तों कि जो मुझे, कल तक अज़ीज़ थे।
लगाए शक्ल पर धब्बे, कि दामन छोड़ना होगा।।
बन्द आँखों से कब तक, भरोसा करते रहेंगे हम।
खोल कर अपने आँखों को, पलड़ा तोलना होगा।।
मैं देखा करता था अक्सर, मगर था बोलता नहीं।
कुरेद गए वो इतना गहरा, कि अब बोलना होगा।।
तूँ करती फिक्र थी मेरी, मैं तकता था तेरी राहें।
अब ऐसे आशाओं का, गला हमें घोटना होगा।।
रही कुछ गलतीयाँ तेरी, रही कुछ गलतीयाँ मेरी।
पर गलती थी बड़ी किसकी, यह टटोलना होगा।।
मैं चुप था, मैं चुप हूँ, मैं ऐसे, चुप ही रहूंगा अब।
इतनी उलझनें उसको भी, क्या कचोटता होगा।।
बुराई ढूढतें रहते हैं जो, दुनिया मे घूम- घूम कर।
लगाके अपने घर वो आईना, क्या सोचता होगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १५/०४/२०२४)