उलझनें
धड़कनों में पल रही हैं कल्पना की उलझनें
पाँव से लिपटी हुई हैं वर्जना की उलझनें
तुम तो सुख ठहरे, तुम्हारा हमसे क्या रिश्ता भला
साथ अब देने लगी हैं वेदना की उलझनें
आ गया जो पास इनके, फिर कहाँ वापस हुआ
हैं बहुत प्यारी हमारी भावना की उलझनें
नाम जब आए तुम्हारा लेखनी की नोंक पर
दूर तक दिखती नहीं हैं सर्जना की उलझनें
खूबसूरत रास्तों पर इस तरह भटके ‘असीम’
ज़िन्दगी का जाल है या अल्पना की उलझनें
© शैलेन्द्र ‘असीम’