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17 Nov 2021 · 1 min read

उलझनें

धड़कनों में पल रही हैं कल्पना की उलझनें
पाँव से लिपटी हुई हैं वर्जना की उलझनें

तुम तो सुख ठहरे, तुम्हारा हमसे क्या रिश्ता भला
साथ अब देने लगी हैं वेदना की उलझनें

आ गया जो पास इनके, फिर कहाँ वापस हुआ
हैं बहुत प्यारी हमारी भावना की उलझनें

नाम जब आए तुम्हारा लेखनी की नोंक पर
दूर तक दिखती नहीं हैं सर्जना की उलझनें

खूबसूरत रास्तों पर इस तरह भटके ‘असीम’
ज़िन्दगी का जाल है या अल्पना की उलझनें
© शैलेन्द्र ‘असीम’

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