उर से तुमको दूंँ निर्वासन!
अक्सर आंँसू ने धोखा से छोड़ा नयन का व्योम अकिंचन।
घटना है, प्रयास अथक है, मन से तुमको दूंँ निर्वासन!
फूल सरीखा दिल है मेरा
तुम कहते हो पत्थर होने।
जैसे फूल ही खुद कहता हो
राहों में अब कंटक बोने।
निज दायित्वों पर अड़े रहो ,
चाहे रोता जाए प्रेमी मन।
अक्सर आंँसू ने धोखा से छोड़ा नयन का व्योम ,अकिंचन।
घटना है, प्रयास अथक है, मन से तुमको दूंँ निर्वासन!
तिरस्कार करने वाले सुन,
प्रेम खेल की वस्तु है क्या?
उत्तल भाव की गाथाओं में,
अवतल प्रेम तथस्तु है क्या?
छोड़ो,जिसका दर्द वो जाने
कैसे करे विकल संपादन…
अक्सर आंँसू ने धोखा से छोड़ा नयन का व्योम ,अकिंचन।
घटना है, प्रयास अथक है, उर से तुमको दूंँ निर्वासन!
मेरी कविता के सर्वनाम के
केवल तुम ही इक संज्ञा हो…
मेरी व्यथा की आहें तुम हो
आहोँ की सिसक ठिठक प्रज्ञा हो।
मैं इक तरफा प्रेम किया हूंँ,,
तुमको करना था निष्पादन।
अक्सर आंँसू ने धोखा से छोड़ा नयन का व्योम ,अकिंचन।
घटना है, प्रयास अथक है, उर से तुमको दूंँ निर्वासन!
रातें थी प्यासी आंँसू की
मैंने रोकर प्यास बुझाई।
तुम चंँदा का हाथ थामकर
खेल रही छुप्पन छुपाई।
बाक़ी केवल तुम खुश रहना,
मैं दर्दों में काटूंँ जीवन!
अक्सर आंँसू ने धोखा से छोड़ा नयन का व्योम ,अकिंचन।
घटना है, प्रयास अथक है, उर से तुमको दूंँ निर्वासन!
दीपक झा रुद्रा