उर के उद्गार लिखे हैं
आज बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी के प्राकट्य दिवस पर आप सबको कोटि कोटि बधाई।
पेशे खिदमत है एक गीत
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शब्द न सादे समझो इनको ये उर के उद्गार लिखे हैं।
माँ वाणी के कर कमलों की वीणा के झंकार लिखे हैं।।
फूलों शूलों की समीपता अमित प्रणय की कथा लिखी है।
रौंदे मसले दले हियों के तिरस्कार की व्यथा लिखी है।
दिन प्रतिदिन दुर्बल कर कर के तोड़ रही जो टुकड़े टुकड़े
विस्फोटक, पर, प्रिय, समाज को वर्णवाद की प्रथा लिखी है।
जिनकी थाती है कुलीनता उनसे अपयश घूंट पिये हैं
कुछ अपने अनुभव बांटे हैं कुछ जग के व्यवहार लिखे हैं।।
लिखने को तो समरसता के सहज भाव लिख सकते थे।
ऊंच नीच की घृणित रीति के दुष्प्रभाव लिख सकते थे।
दण्ड सुनिश्चित लिख सकते थे मानवता की हत्या का,
भेदभाव भारत के उर का घोर घाव लिख सकते थे।
यह ही लिखना चाहा होगा और लेखनी बाध्य नहीं थी
पर विधान के अनुच्छेद क्यों रिपुदल के अनुसार लिखे हैं।।
मुकुट हिमालय वाला भारत महाप्रलय से नहीं डरा है।
अधिकारों के लिये देश में महासमर की परम्परा है।
यहाँ योग्यता के द्वारे पर आरक्षण दल का पहरा है।
कैसे न्याय गुहार सुनेगा न्यायालय अन्धा बहरा है।
आशा भाव प्रबल करने को अर्जुन में श्रीनारायण ने,
कर्मयोग का बोध कराती श्री गीता के सार लिखे हैं।।
संजय नारायण