उर का कान्हा…..
चंद दोहे
कठिन स्वयं को जानना,सचमुच मेरे मीत.
बिनु जाने ख़ुद को सरस,मिले न दुख पर जीत.
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कौन है अपना दोस्तो,कौन पराया यार.
आता ना हमको समझ,लोगों का व्यवहार.
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उलझे हम ख़ुद में हुये,कहते अक़्सर लोग.
बने न अब तक प्रीत के,इसी वज़ह से योग.
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सच पूछो तो हम जिन्हें,करते दिल से प्यार.
उनसे ही पग-पग हमें,मिलता बस दुत्कार.
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उर का कान्हा ढूँढ़ता,बस राधा सी प्रीत.
मगर न अब तक पा सका,गोरी का दिल जीत.
*सतीश तिवारी ‘सरस’