उमड़े घुमड़े क्या मेरे अन्तस्
1उमड़े घुमड़े क्या मेरे अन्तस्
उमड़े घुमड़े क्या मेरे अन्तस,
मैं कुछ भी समझ न पाऊं,
कौन हिलोरें लेता मुझ में,
कौन शांत सा हो जाता है,
कोई वेदना अवचेतन में,
गीत फाग के कैसे गाउँ।
उमड़े….
दान दिया सौरभ जीवन का,
मैंने जिस भी उपवन में,
वही निर्वसन देता मुझको,
हाय जीवन पतझड़ में,
व्यथा पुरानी पर चिरकालिक ,
समझो क्या मैं समझाऊं।
उमड़े घुमड़े….
सब कुछ है फिर भी एकाकी मन,
नेह ढूंढता फिरता है,
कोई आकर दो पल बैठे,
हृदय सिक्त सा रहता है,
भार समझते अपने रिश्ते,
और कहानी क्या बतलाऊँ।
उमड़े घुमड़े…
हां दौनों वक्त पेट तो भरता,
भूखा तो मैं नहीं हूँ मरता,
पर बोल प्रेम के नहीं हैं मिलते,
पड़ा अकेला ही अकुलाऊं।
उमड़े घुमड़े…….