#उम्र#
यूं इश्क में एक उम्र गुज़री तन्हा
मन परिंदा बारहा उड़ता रहा तन्हा,
उम्र जब ढलने लगी , तो पंख मिले अरमानों को
जिंदगी के फलसफे समझ आने लगे रफ्ता-रफ्ता,
उम्र का बढ़ना दस्तूर-ए- जहां है,पर
इश्क़ के फितूर ने इक उम्र ज़ाया कर दी,
दिल खिलौना है, ये तो जानते थे हम
न जाने क्यूंकर, दिल के हाथों मजबूर हो गए हम,
चलो.. उम्र के इस दौर का भी अपना मज़ा है
शौक़, ख़्वाहिशें, धड़कनें तो अब भी जवां हैं,
जो गुज़र गया ,अफ़सोस क्या करें उसका
ख्वाबों को जीने की ज़िद तो अब भी वैसी ही है.