उम्र
उम्र ही था जो हर शाम सूरज के साथ थोड़ा ढल गया
सूरज तो ज्यूं का त्यु रहा उम्र किस्तों में ढल गया.
हर शाम एक छटाक बचपन बुढ़ापे के गोद में चल गया
बुझता सूरज रात में सो के सुबह सुबह फिर जल गया
~ सिद्धार्थ
उम्र ही था जो हर शाम सूरज के साथ थोड़ा ढल गया
सूरज तो ज्यूं का त्यु रहा उम्र किस्तों में ढल गया.
हर शाम एक छटाक बचपन बुढ़ापे के गोद में चल गया
बुझता सूरज रात में सो के सुबह सुबह फिर जल गया
~ सिद्धार्थ