उम्र
गर्दिश में हों अगर सितारे !
कैसे कोई उम्र गुज़ारे !!
मुस्कानों के पीछे छिपकर !
बैठे हैं दो आँसू खारे !!
बिना बुलाए ग़म के मन्ज़र !
आ जाते हैं पास हमारे !!
कभी अमीरी कभी गरीबी !
किस्मत के ही खेल हैं सारे !!
तेरा-मेरा-मेरा-तेरा !
हर इंसा है यही पुकारे !!
जब होता है मेल दिलों का !
दिलकश लगते सभी नज़ारे !!
मज़हब की दीवारें तोड़ो !
कहे मुसाफ़िर तुमको प्यारे!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
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