पचपन को कर पार नहीं घबराना तुम
पचपन को कर पार नहीं घबराना तुम
नया दौर ये हँसते हुये बिताना तुम
माथे पर छाई हों लटें रुपहली सी
चमक दिखे आँखों की नहीं सुनहली सी
दिखने लगें लकीरें भी कुछ चेहरे पर
मुस्कानों पर चिंता बैठी पहरे पर
तन में चाहें कितनेभी हों परिवर्तन
मन को लेकिन मत कमजोर बनाना तुम
लगे कि पूरी हुईं सभी जिम्मेदारी
सोच पुरानी बातें ये दिल हो भारी
क्या-क्या जीता और यहाँ क्या-क्या हारा
लगे गँवाया यूँ ही ये जीवन सारा
अभी कहानी बाकी है कब खत्म हुई
तब अपने मन को बस ये समझाना तुम
माना दुनिया बेगानी सी लगती है
बच्चों से दूरी भी मन को खलती है
बड़ा अकेलापन सा लगने लगता है
सेहत का भी रूप बदलने लगता है
लेकिन कोई कैसी भी हो मजबूरी
अपने मन से देखो टूट न जाना तुम
अपने मित्रों के सँग में मिलकर बैठो
बच्चे बनकर खेलो हँसों लड़ो ऐठो
आशाओं के ही बस मन में दीप जलाओ
तन्हाई का तम जीवन से दूर भगाओ
सैर सपाटे को भी कुछ बाहर निकलो
थोड़ा धन अब अपने लिये लुटाना तुम
08-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद