उम्र पचपन की दिल बचपन का …(, हास्य व्यंग कविता)
उम्र पचपन की दिल बचपन का ,
दौड़ना तो चाहे दर्द मारे घुटनों का ,
कमबख्त इस मुए मोबाइल की लत न छूटे ,
नंबर बढ़ जाए चाहे चश्में का ।
दिल में जोश आए के चढ़ जाएं पर्वत ,
सांस फूलती जाए और घुटनों पर हाथ ,
नदिया में गोते खाने का मन करे मगर ,
डर है डूब गए तो छूट जायेगा जिंदगी का साथ।
खाने को मन करे जब ठंडी ठंडी आइस्क्रीम ,
ओह तौबा ! दांत पकड़ कर रह जाएं हम ।
और फिर कभी लालच आए सेब अमरूद खाने का ,
दांत टूटने का डर सताए मन मार कर रह जाएं हम ।
दोस्त और रिश्तेदार हमें वास्ता दें उम्र का ,
अब न रही वो जवानी और न रही ताकत।
अब पचपन के हो गए हो ,छोड़ो बचपना ,
खेलने कूदने के लिए जरूरी है हिम्मत।
राम नाम जपो ,कर लो धर्म कर्म के काम ,
राम जाने कब बुलावा आ जाए जाने को वैकुंठ धाम ।
अगले जन्म में निकालना अपने अरमान सारे ,
अब ये समय है कर लो तनिक विश्राम ।