उम्र पचपन का
बचपन की यादें,पचपन में,
हम बड़े शौक से लेते हैं ।
सब चुस्ती फुरती खत्म हुआ,
अब सुस्ती में हम रहते हैं ।।
जल्दी का काम बिगड़ जाता,
हर काम सुस्ती से होता है ।
आज का काज कल होता है,
इसी कारण ये दिल रोता है ।।
बचपन में थी चुस्ती फुरती,
अब पचपन में ही सुस्ती ।
यह सोच – सोच घबराता हूँ मैं,
कैसे करूँगा अब कुश्ती ।।
पचपन की उमर में मुझको,
बहुत थका थका सा लगता है ।
जिसके चलते एक लोटा पानी भी,
अब मुझसे लिया नहीं जाता है ।।
भोजन करना भी अब मुझको,
बड़ा काम है लगता ।
यही सब दिनभर यारों,
मैं सोचता रहता ।।
नटखटपन अब भी गया नहीं है,
थोड़ी-बहुत हो जाती नादानी ।
याद आती है,हमें भी अपना,
पहले वाली जवानी ।।
अब तो बूढ़े हो गए हम,
उम्र हो गये पचपन के ।
वो दिन भुल ना पाते हैं,
जो दिन बीते हैं बचपन के ।।
पुरी जवानी बीत गई मेरी,
फिर भी कहते हैं सब मुझको ।
इनका उम्र हो चुका पचपन का,
दिल अब भी है बचपन का ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 28/01/2021
समय – 12 : 53 ( दोपहर )
संपर्क – 9065388391