उम्र के साथ
उम्र के साथ
बदलने लगे हैं सपने
छूटने लगी हैं इच्छाएँ
लगता था
पहले जो सार्थक
अब लगने लगा निरर्थक
सिमट कर
बहुत छोटी हो गई दुनिया
सारे तीर्थ
एकत्रित हो गए
घर में आसपास
गंगा भी आ गई
अपना लघु रुप लिए नल में,
कहते हैं
सारे सुख तभी
जब देह में हो सामर्थ्य
वरना तो सब मिट्टी है
इसी से बने
और इसी में मिलना है,
मिट्टी हो देह
इससे पहले ही
छू लो
बदले हुए
सपनों का आकाश
कर दो बंधे मन को उन्मुक्त
देह को जब
मिट्टी होना ही है
मार्ग सुगम/अबाध
करना ही होगा।
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई