” उम्र का सांध्य पहर “
बचपन से जवानी तक
जवानी से प्रौढ़ होने का सफर
जीवन की सांध्य बेला पर ठहर जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
सारी यादें एक – एक कर
ज़हन में आती जाती हैं
मन उन सारी यादों में अटक सा जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
कितनी भाग – दौड़ कर ली
एक पल को चैन न था
अब तो तन – मन को आराम आ जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
तब तो फुर्सत ही नही थी
किसी को याद करने की
इस पड़ाव पर आकर सब याद आ जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
उस वक्त कितनी उलझने थीं
और अनगिनत परेशानियां
अब तो जैसे सब सुलझता सा जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
इस बेला में आकर
सब अपने हो जाते हैं
सबका मन आपस में एक सा हो जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
कितनों का साथ छूट गया
और कुछ साथ हैं
उनके पास जाने को मन लालायित हो जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
मन हर बात पर ज़िद करता है
हर चीज पर ललचाता है
इस उम्र में वापस बचपन लौट कर आ जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ,
सुबह – दोपहर निराली थी
सांध्य भी वैसी ही बीते
यही कामना करते हुये जीवन चलता जाता है
उम्र का ये पहर सबके जीवन में आता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/10/2020 )