उम्रें गुज़र गयी है।
उम्रें गुज़र गयी है इश्क को निभाने में।
मुकम्मल ना हुआ यह किसी जमाने में।।1।।
कल था आज है और कल भी रहेगा।
रिश्ता रहेगा सदा शम्मा ओ परवानें में।।2।।
कितनी भी पी लो खुमारीं ना आएगी।
जाम तो मज़ा देता है बस मयखानें में।।3।।
झूठ बोल रहे हो मत लब चढ़ी नहीं है।
पीने वाला सच बोलता है चढ़ जाने पे।।4।।
तुम यह मान लो, बे-इश्क के अच्छे हो।
सुकूँ चला जाता है दिल को लगाने में।।5।।
इतनी हिम्मत कहाँ से आई लड़की में।
किसी की तो शय थी यूँ उसे भगाने में।।6।।
सब कुछ मिल जाता है इस जमाने में।
अगर लगे रहो हर वक्त उसको पाने में।।7।।
वो चाहता तो यूँ ही सजा दे देता इन्हें।
दुश्मनी का मजा है दुश्मन तड़पाने में।।8।।
जाकर पूंछों उसे क्या मिलता है ऐसे।
जो लगा रहता है सब को लड़वाने में।।9।।
होशों हवास कम रहता है परवानों में।
पतंगें का जुनू है जलकर मर जाने में।।10।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ