उम्मीद
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला था
कि जो भी लफ़्ज़ था वो दिल दुखाने वाला था.
आशा की थी कि दरिया पार कर जायेंगे साथ मे
लेकिन वो शक्श ही ह्रदय से गेम वाला था
उम्मीद के बसर मे निकले थे हम
पर वह मुसाफिर ही लफ्जो से प्रकाश डालने वाला था
नयन बिछाए थे जिसके ख्वाबो मे
वह सज्जन ही अरमानो को बहाने वाला था
शेखर की कलम से ✍️