उम्मीद
कौन कहता है हारकर इंसान टूटते हैं हम तो हारकर भी रोज अपने आप से लड़ते हैं
पर होने से कुछ नहीं होता हौसले भी तो चाहिए ,
हम तो बिना परो के भी हौसलो की उड़ान भरते हैं।
एक न एक दिन वो हमारा होगा ,जो सपना हमारी आंखों में पलता है । टूटता है सपना इंसान नहीं आज टूट गए तो फिर जुड़ नहीं पाएंगे ,उम्मीद की एक किरण को सूरज बना नहीं पाएंगे ,आज हार गए तो क्या , हुआ अपनी गलती का सुधार हर रोज करते है इसलिए अपनी उम्मीद को जिंदा हर रोज रखते हैं ।
हम तो हारकर भी हर रोज अपने आप से लड़ते हैं।