उम्मीद
उम्मीद
इंसां तुझे बनाकर ख़ुदा हो गया शर्मसार
तेरी हरकतों पे हो रही मौत भी शर्मिंदा है
हे मालिक तुम भी तो केवल दृष्टा निकले
जमीं पे बस दुःख दर्द दहशत बाशिंदा है
खुद की ना कर फ़िकर चढ़ गए सूली पर
ऐसे मसीहा….अब इस जहां में चुनिंदा है
तोड़ा मोड़ा कस कर बांधा….फूँक डाला
ज़िंदगी न हुई मानो काग़ज़ का पुलिंदा है
आशा की उँगली थामे चल रही है साँसें
गिरती उठती ज़िद्दी आस पर ही ज़िंदा है
राख के ढेर में चिंगारी दबी है जीवन की
पंखों से देता हवा…उम्मीद का परिंदा है
रेखांकन I रेखा
*दृष्टा-देखनेवाला,दर्शक