उम्मीद
रातों रोई कामना, दुखी हुई उम्मीद।
एक एक कर हो गये, सपने सभी शहीद।।
आशाएँ विकलांग हैं, और स्वप्न बीमार।
ले लेता हूँ रोज ही, सांसें चंद उधार।।
धुआँ-धुआँ सी जिंदगी, लहू-लहू उम्मीद।
हालातों ने कर रखी, मिट्टी बहुत पलीद।।
पीली-पीली हो गयी, इच्छाओं की दूब।
आशाओं का भास्कर, गया तिमिर में डूब।।
वर्तमान को कर रहा, था जब दर्द खराब।
चुटकी भर उम्मीद ने, रखे सुरक्षित ख्वाब।।
प्रदीप कुमार