उम्मीद की किरण
समय के विषम स्थितियों में मानव
फड़फड़ाता परिंदा होता है
उम्मीदें खो जाने पर अंदर
कुछ तो जिन्दा होता है
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण
ज़ब वक़्त खिलाफ होकर
आदमी को मार जाता है
तमाम कोशिशों के बाद भी
आदमी ज़ब हार जाता है
तो फिर उम्मीद कहती है
दिल के कोने से कहीं
हल कभी न निकला है
रोने से कभी
चल उठ! समस्याओं का
कर निवारण
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण
थक के ऐसे ही बैठे रहे तो
हार जाओगे
अपने अंदर की उम्मीदों को भी
मार जाओगे
चलने का नाम ही तो है जिंदगी,
ऐसे ही बैठे रहे तो,खाक पाओगे
अपने आप को पहचानो
अरे! तुम हो असाधारण
यही तो है उम्मीद की किरण
जो उपजती नहीं अकारण
-सिद्धार्थ गोरखपुरी