उम्मीद अपनी क्या करें,,,
उम्मीदें अपनी क्या करें, जज़्बात क्या करें,
अपने ही बस में जब नहीं, हालात क्या करें,
कशकोल अपने अपने लिए आते हैं सभी,
सिक्के हमारे खोटे हैं ख़ैरात क्या करें,
हर शख़्स की ज़बां पे है माज़ी का तज़किरा,
ऐसे में हम किसी से नई बात क्या करें,
यारो, पुराने ज़ख़्म हरे हैं अभी तलक,
ऐसी फ़ज़ा में तुम से मुलाक़ात क्या करें,
ईमान अपना अब भी साबित बचा हुआ,
इस दौर में कुछ और करामात क्या करें,
——-अशफ़ाक़ रशीद…