उम्मीदों के मोजे
उम्मीदों के मोजे
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कड़कड़ाती निष्ठुर ठण्डी के बीच
चलो शहर का एक चक्कर लगा आयें
कुछ मासूमों ने टांगे हैं उम्मीदों के मोजे
चलो उनमें कुछ खुशियाँ भर आयें
नुक्कड़ वाले घर में भूख का साया है
उनके लिये खुद मोजे भर रख आयें
ढाबे वाला छोटू तक रहा होगा राह
उसके हाथों में दस्ताने पहना आयें
वो सोच रहा है मोजा कहाँ से लाऊँ
उसकी आँखों मेंं सपनेे भर आयें
ठिठुर रहे हैं कुछ लोग सड़क पर
उन्हे कम्बल ओढ़ा राहत दे आयें
वो फटे पुराने कपड़ों में सिमटी है
एक गरम स्वेटर उसको पहना आयें
बैठते हैं मजदूर जहाँ पर दिन भर
उस नुक्कड़ पर अलाव जला आयें
वो गुड़िया नंगे पाँव खिलौने बेचती है
उसके पैरों में जूते मोजे पहना आयें
बूढ़ी अम्मा देर रात तक बेचती है बेेर
आज उसको थोड़ा सा खुश कर आयें
चर्च में जलने वाली मोमबत्तियों से
अँधेरे पड़े घरों को रौशन कर आयें
कल की छुट्टी है इसका जश्न मनायें
आज यूँ ही अपनी रात बिता आयें
कड़कड़ाती निष्ठुर ठण्डी के बीच
चलो शहर का एक चक्कर लगा आयें ।
” सन्दीप कुमार “