उम्मीदों के पुल
देर से ही सही
आ गया हूं उन राहों मे
जहां मिलने लगा है सकून
जिन्दगी के चलते सफर मे ।
मौसम के बिना ही
फूल खिलने लगे हैं शाखाओं मे
उठने लगी हैं चिंगारियां
बुझती हुई मशालों मे ।
हल्के उजाले ही सही
उम्मीदों के पुल बने हैं अंधेरी रातों मे
दिल के ख्वाब पुराने ही सही
दस्तक देने लगे हैं फिर आंखों मे ।
बिजली दूर से ही सही
चमकने लगी है बादलों मे
पलट रही है तकदीर की बाजी
जिन्दगी की बदलती हुई चालों मे ।।
राज विग