उम्मीदों का सूरज
नई उमंग जाग जाती है,
हीन भावना भाग जाती है,
जिस ओर देखो उस ओर,
अब नई राह नज़र आती है,
उम्मीदों का सूरज जरूर निकलता है।
उम्मीद है तो मानो जीवित हो,
खुलकर उड़ो न तुम सीमित हो,
सारा जहाँ है मानो तुम्हारा,
क्यो तुम अपने पथ से भृमित हो,
उम्मीदों का सूरज जरूर निकलता है।
बहो जैसे जल बहता है,
बता तू निराश क्यो रहता है,
रुकने को तुझसे कौन कहता है,
कठिनाइयों को कौन नही सहता है,
उम्मीदों का सूरज जरूर निकलता है।
शोएब खान शिवली