उम्मीद
कहानी – उम्मीद
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(माँ अपने बेटे से चिल्लाते हुए)बेटा राकेश ! पढ़ाई कर रहे हो कि नहीं?कल गणित का टेस्ट परीक्षा है।जी माँ गणित का सवाल ही हल कर रहा हूँ।राकेश अपने माता-पिता को आदर्श मानते थे।उसका हर आदेश का पालन करता।राकेश बहुत होनहार और ईमानदार लड़का था।उनके गुरुजी भी उनको एक आदर्श छात्र के रूप में मानते थे।प्रतिवर्ष कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होता। बारहवीं उत्तीर्ण के पश्चात कालेज के पढ़ाई जारी रखा।कालेज में वह एनसीसी में भाग लेकर नियम और अनुशाषित रहना भी सीखा।इस दौरान उसने विश्व के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट को गुरु मानकर दौड़ना प्रारंभ किया।लगातार मैराथन दौड़ में हिस्सा लेता था।उम्मीद को कभी नही छोड़ा।कई बार उसने क्षेत्रीय स्तर पर मैडल अर्जित कर माँ बाप का नाम रोशन किया।कई बार समाचार अखबार में भी आने लगा।परंतु उनका लक्ष्य अधूरा ही रह गया।अंतिम दौर पहुंचकर भी सफलता नही मिल पाता था।
राकेश सिर लटकाये हुए बैठा था।मन ही मन सोच ही रहा था कि इतना पढ़ लिख कर खाली बैठा हूँ।मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ कुछ समझ में नही आ रहा है।राकेश अवसाद ग्रस्त होने लगा।अंत में उसके मामा ने उसे अपना जीवन का कहानी बताकर उसको पुनः उम्मीद के किरण उनके मन में जागृत किया।अपने मामा के प्रेरणा से वह फिर नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ने के लिये कार्य आगे बढ़ाया।उनको अन्ततः सफलता मिली।मेहनत का फल मीठा होता है।
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लेखक – डिजेन्द्र कुर्रे(शिक्षक)
शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला पुरुषोत्तमपुर विकासखंड बसना जिला महासमुंद (छत्तीसगढ़)