‘उम्मींद की रौशनी’
उलजनोंमें हम तो ऐसे फ़स गए,
मानो गहरी खाई में गिर गए…!
हर कोशिश करके देखलीं,
उलजनों को सुलझाने की…
लेकिन… भवंडर की तरह फ़स गए…!
अब तो नामुमकिन लग रही थी मंजिल,
लेकिन… उम्मींद की परखने रौशनी डालीं…!
जादू अपना कर गई…!..!
मेंहनत और विश्वास से,
हारी बाज़ी जीत गए…!!