उमेश शुक्ल के हाइकु
नई शिक्षा नीति का शोर
कक्षाएं तज शिक्षक हो गए हैं मोर
युवा रोजी के लिए चकोर
रुपये रुपया को खींचते हैं
भरोसा न हो तो कुछ दांव लगाओ
यत्न से कुछ मत्स्य पाओ
एक परिसर में स्वच्छता शिविर
चाय समोसे हथियाने को हर कोई अधीर
फिर मंजर में कर्कट निविड़
ईमानदारी औ श्रम पर आख्यान
शहरों में चमचमाते संगमरमर के कई मकान
रोज सुविधा शुल्क से जत्नपान
मंदिर पर लगाया बड़ा भंडारा
पूड़ियां कम खपें दमखम लगा दिया सारा
कुकुर टोली करती रही चीत्कार