उमीद-ए-फ़स्ल का होना है ख़ून लानत है
ग़ज़ल
उमीद-ए-फ़स्ल का होना है ख़ून, लानत है
पलट के आया नहीं मानसून, लानत है
गिराने के लिए ही प्यार का मकाँ तूने
ख़ुलूस-ओ-अम्न का खींचा सुतून, लानत है
सरों से छीन लिया तूने आशियाना, और
हमारे सर पे खड़ा माह-ए-जून, लानत है
गुज़ारनी थी तुझे अपनी सर्द रातें जो
बदन से काटा है भेड़ों का ऊन, लानत है
अवाम मरती रही और देखता तू रहा।
कहाँ गया तेरा इल्म-ओ-फ़ुनून, लानत है
बची है घट के अब आधी ‘अनीस’ आमदनी
कहा था तूने कि होगी ये दून , लानत है
– अनीस शाह ‘अनीस’
सुतून =खम्बा, थामा। इल्म-ओ-फ़ुनून=ज्ञान और कलाएं।