उमस जिंदगी
ना हुई सुबह, ना ढल रही है शाम
देखते है ये जिंदगी, लेगी कब तक इम्तिहान
जो उठ ना सके हारा हुआ इंसान
इस जिंदगी के बोझ में न जाने कितने हुए कुर्बान
एक समय था जब हम थे नादान
समझ न थी कि ये क्या होता है इंसान
हारे थे उस वक्त भी लेकिन न थी इतनी ज्ञान
ये जिंदगी है साहब न कि खेल का मैदान
हमे पसंद है आज, वो जगह सुनसान
जहाँ न हो धरती , न हो आसमान
इस भागमभाग की जिंदगी मे, बहुत हुआ परेशान
ये जिंदगी है साहब ना कि खेल का मैदान!
आदर्श कुमार