उमंग
उमंग सा भरा बचपन
तरंगों से भरा जीवन
द्वेष नहीं कभी किसी मन
घर आंगन में फुदकती रहती।
चिड़िया जैसी चहकती रहती।
हस्ती रहती हर पल
माँ-बाप के घर पर।
समय है जो रुकता नहीं
कभी किसी के पास टिकता नहीं।
बढ़ता जाता पल-पल
बाँह फैलाए इस चिड़िया को।
उमंग से उड़ान भरने को
कहता है हर पल।
नई उमंग को लिए साथ
चिड़िया को तो उड़ना है।
याद समेटे दिल मे बाबुल के घर से जाना है।
नए आँगन में फिर खुद को
नई उमंग से ढालना है।
और पूर्ण प्रफुल्लित,उल्ल्हास, उमंग से नए परिवेश को अपनाना है।
भारती विकास(प्रीति)