उफनता नाला
उफनता नाला
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मोहन ने अपनी पढ़ाई पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ पूर्ण की थी । पढ़ाई के साथ- साथ घर का खर्च चलाने हेतु छोटे- मोटे बहुत सारे काम जैसे- कपड़े की दुकान पर काम, अखबार बाँटना, सिनेमा घर , टेलीफोन बूथ, प्रायवेट स्कूल में पढ़ाना, होम ट्यूशन आदि किये थे । सच्चे मन से की गई मेहनत हमेशा रंग लाती है ।
मोहन को यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई, कि उसे शिक्षक की सरकारी नौकरी मिल गई, वो भी पूरे 2500/- प्रति माह की, मोहन ने तुरंत यह नौकरी स्वीकार कर ली ।
बारिश का मौसम धीरे- धीरे खत्म होता जा रहा था । मोहन ने गाँव से दूर कस्बे में किराए का मकान लिया । अब मोहन एक छोटे से गाँव में कस्बे से 5 किलोमीटर दूर साइकिल से पढ़ाने जाने लगा । यह जगह नई थी, नए – नए लोग थे । कस्बे में एक बड़े से मकान के छोटे से कमरे में मोहन अकेला रहता था । नित्य सुबह साइकिल से स्कूल जाना और शाम को बच्चों को पढ़ाकर आना , यही दिनचर्या बन गई थी । स्कूल में कम ही शिक्षक थे,बच्चे पढ़ने में रुचि कम रखते थे तथा आधे दिन स्कूल आने के बाद फिर नहीं आते थे । शिक्षक भी एक सूत्र अपनाते थे कि ” बने रहो पगला, काम करेगा अगला” मोहन को यह अजीब लगता था । वह तो पूरी मेहनत से पूरे समय पढ़ाता था । किन्तु बच्चों को शुरू – शुरू में यह अच्छा नही लगा । बच्चे मोहन को परेशान करने के लिए चुपके से साइकिल की हवा निकाल देते थे । मोहन इन बातों से परेशान नहीं होता था, बल्कि इनका सामना सहज ही कर लेता था । अब धीरे- धीरे बच्चों में सुधार हुआ, अब वे पूरे समय मन लगाकर पढ़ने लगे । कस्बे से स्कूल तक कि सड़क शुरू में कच्ची थी,बारिश में कीचड़ हो जाता था । पैदल चलना भी दूभर हो जाता था । एक दिन स्कूल के एक शिक्षक मिस्टर लाल मोटर साइकिल सहित गड्ढे में कूद गए थे , कीचड़ में लथपथ होकर जैसे-तैसे निकले थे । बीच में एक नाला भी पड़ता था, जो बारिश में उफान पर आ जाता था ।
कुछ दिनों बाद गाँव के सम्मानीय जनों के सहयोग से प्रधानमंत्री रोड स्वीकृत होकर बन गया था । मोहन अपने एक साथी शिक्षक मिस्टर सिंह के साथ दोनों साइक्लिंग करते हुए साथ- साथ आते जाते थे ।
दिन बहुत अच्छे से निकल रहे थे । पढ़ाते- पढ़ाते एक साल हो गया किन्तु तनख्वाह अभी तक भी नहीं मिली थी, क्योंकि मोहन और साथी शिक्षक के नाम संकुल की गलती से छूट गए थे । जैसे – तैसे यहाँ – वहाँ भटकने पर तेरह महीने पश्चात पहली तनख्वाह प्राप्त हुई ।
एक दिन की बात है, बारिश के दिन थे । काले – काले मेघ सुबह से घिर आए और थोड़ी देर में गरजने के साथ- साथ बरसना शुरू कर दिया । शुरू में तेज फिर धीरे- धीरे कम हुआ । मोहन का मन असमंजस में था कि आज स्कूल जाया जाए या नहीं । साथी शिक्षक मिस्टर सिंह से चर्चा उपरांत दोनों न पैदल राह पकड़ ली कि चलो चलते है, नहीं जाएंगे तो बच्चों की पढ़ाई छूटेगी । पानी अभी भी गिर रहा था, जैसे कोई संकेत दे रहा हो कि आज न जाइए । वे धीरे- धीरे कस्बे बाहर गाँव की पक्की सड़क पर चले जा रहे थे, उसी समय एक मोटर साइकिल सवार जो देखने मे हट्टा कट्टा लग रहा था, उसने पता पूछने के लिए गाड़ी रोकी, वो भी उसी गाँव जा रहा था । उसने उन दोनों को पीछे बिठा लिया । वे तेज गति से जा रहे थे दूर से ही देखा कि नाले पर कुछ लोग इधर और कुछ लोग उधर खड़े हुए थे । नाला बहुत तेज नहीं बह रहा था , किन्तु बह तो रहा था । कुछ लोग ही पैदल एक – दूसरे का हाथ पकड़कर धीरे- धीरे निकल रहे थे । उन्हें लगा कि यह अपरिचित आदमी गाड़ी रोक लेगा, किन्तु इसने गाड़ी नहीं रोकी, इसे लगा कि मोटर साइकिल निकल जाएगी । जैसे ही गाड़ी पानी में उतरी बहाव के आगे बेबस हो गई, कुछ ही पल में आँखों से
के सामने से तिरछी होकर गिरी और बहने लगी । मोहन और मिस्टर सिंह भी पानी में गिरे और हाथ पैर नीचे पत्थरों से टकराये । उस समय कुछ नही याद रहा, तुरंत वापस दौड़ गए सड़क तरफ । आगे मिस्टर सिंह, उनके पीछे- पीछे मोहन और मोहन के पीछे अपरिचित । मोटर साइकिल बहकर आगे बड़े- बड़े पत्थरों से अटक कर रह गयी । उनकी साँस कुछ देर के लिए अटक गई थी , बस ईश्वर ने उनकी रक्षा की । मोहन का घुटना छिल गया था तथा दोनों पैर के चप्पल बह गए थे ।
” बहता नाला देखकर, उतरो कभी न यार ।
जल से कभी न खेलिए, करो इसका विचार ।।
मोहन के मन में यह ” उफनता नाला ” सदा याद रहेगा । एक पल की भी देर हो जाती तो शायद मोहन बहुत दूर चला जाता । इसलिए हवा,पानी, आग , धरती और आकाश को सहज न समझिए यह पंच तत्व है , जिसमे ईश्वर की असीम शक्ति समाहित है ।।
—-जेपी लववंशी