Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jan 2022 · 2 min read

उपेक्षिता

टपकते रिश्ते में खून(रक्त )होती,
तो ये नासूर न होते ।
क्या मिला वजूद
अपने आप को।
जिंदगी के लय में
बिखरे हुए क्रम से
खुद से उलझते
वक्त के गुजार में,
लुटी हुई बहार है।
कहाँ से ढूँढ़ लाँऊ
अपनी ही निजता को
दर्द में जो शामिल हो चुका ।
सोहबत या मोहब्बत
चढ़ा चुकी चादर
उम्र – मंजर को ।
बस बैठी है ,आग
अपने ही आँगन में।
देता मौका मुझे , जिंदगी
तो ये निःशब्द
नजर न होती आज ।
कहरता मन
कही निकाले वक्त में
कैसी नसीब पाती हैं,
अपनी ही विरासत में ,
नखरों के पलकों में
जलती हुई शमाँ हूँ।
गमगीन मजार में
जिदंगी के बजार में
बैठी है, जिंदगी
दिल के आँगन में
विरानेपन का दौर लिए।
ढ़ेर सारे ,ठौर रंगिनियाँ
वक्त ने ना रक्खा साथ
क्या शिकवा हुई
अपने ही पल को ।
वक्त के गुजार में
कौन पल हुआं बेगाना
हमने नहीं जाना ।
अपने को ढूंढ़,दे देती हूँ। दर्द की वादियाँ
अपने जहाँ के घाटियों में
उजड़ने की मजबूरियाँ
जिंदगी के मंड़प में,
काफूर हो गये ,खास ।
कैसी मर्जी बनी
ठुकराने की तमन्ना हुई ।
सच पूछो, मेरी जिंदगी
हरेक पल में
कहाँ खड़ी हैं, जिंदगी में,
कौंधता, वक्त प्रश्न बनकर
अपनी पकी दर्द , जिंदगी
चीर मवाद निकाल पाती काश।
उपेक्षिता के दर पर
अपना है,हर पल
कैसे भूल जाऊं
धुँधला सफर
अपनी जिंदगी ।
क्या जी पाती हैं
मानवीय गुण अपने
अपने मान- सम्मान
मूल्यों को खोकर ?
रो- रा के भी जी लेते है ।
एक हम होते हैं, हँसकर भी गुजारा न होता।
अपनी जिंदगी
जन्नत या जिल्लत
दोनों से जुदा है।
उठती है, टीस
कैसे बनी उपेक्षिता
अपनों के बीच। _ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार (भागलपुर )
मेरी स्वरचित रचना है 1-12-0 8की ही है
जिसे मैं आज प्रकाशित कर रही हूं ।

Language: Hindi
184 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"परवाने"
Dr. Kishan tandon kranti
पर्यावरण संरक्षण*
पर्यावरण संरक्षण*
Madhu Shah
किसे फर्क पड़ता है
किसे फर्क पड़ता है
Sangeeta Beniwal
रतन टाटा
रतन टाटा
Satish Srijan
कोई आपसे तब तक ईर्ष्या नहीं कर सकता है जब तक वो आपसे परिचित
कोई आपसे तब तक ईर्ष्या नहीं कर सकता है जब तक वो आपसे परिचित
Rj Anand Prajapati
विनती मेरी माँ
विनती मेरी माँ
Basant Bhagawan Roy
3486.🌷 *पूर्णिका* 🌷
3486.🌷 *पूर्णिका* 🌷
Dr.Khedu Bharti
माँ और बेटी.. दोनों एक ही आबो हवा में सींचे गए पौधे होते हैं
माँ और बेटी.. दोनों एक ही आबो हवा में सींचे गए पौधे होते हैं
Shweta Soni
"मनुष्य की प्रवृत्ति समय के साथ बदलना शुभ संकेत है कि हम इक्
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
चिराग आया
चिराग आया
Pratibha Pandey
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक महीने में शुक्ल पक्ष की
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक महीने में शुक्ल पक्ष की
Shashi kala vyas
वादे करके शपथें खा के
वादे करके शपथें खा के
Dhirendra Singh
लाखों दीयों की रौशनी फैली है।
लाखों दीयों की रौशनी फैली है।
Manisha Manjari
मुश्किल हालात हैं
मुश्किल हालात हैं
शेखर सिंह
ममतामयी मां
ममतामयी मां
Santosh kumar Miri
आजकल की स्त्रियां
आजकल की स्त्रियां
Abhijeet
मुक्तक
मुक्तक
sushil sarna
ज़िंदगी के तजुर्बे खा गए बचपन मेरा,
ज़िंदगी के तजुर्बे खा गए बचपन मेरा,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कोई यहाॅं बिछड़ते हैं तो कोई मिलते हैं,
कोई यहाॅं बिछड़ते हैं तो कोई मिलते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
छू कर तेरे दिल को, ये एहसास हुआ है,
छू कर तेरे दिल को, ये एहसास हुआ है,
Rituraj shivem verma
छन्द- सम वर्णिक छन्द
छन्द- सम वर्णिक छन्द " कीर्ति "
rekha mohan
मानव आधुनिकता की चकाचौंध में अंधा होकर,
मानव आधुनिकता की चकाचौंध में अंधा होकर,
पूर्वार्थ
या खुदा तेरा ही करम रहे।
या खुदा तेरा ही करम रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
महिला दिवस
महिला दिवस
Dr.Pratibha Prakash
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
Manoj Mahato
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
हिरख दी तंदे नें में कदे बनेआ गें नेई तुगी
हिरख दी तंदे नें में कदे बनेआ गें नेई तुगी
Neelam Kumari
🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅
🙅🙅🙅🙅🙅🙅🙅
*प्रणय*
*Relish the Years*
*Relish the Years*
Poonam Matia
व्यर्थ है मेरे वो सारे श्रृंगार,
व्यर्थ है मेरे वो सारे श्रृंगार,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Loading...