उपकारी तरू
प्रराथी होकर जग को। । देते शीतलता का दान। । । हे तरू महान।। उगते सीना चीर धरा का
बिन पानी बिन खाद।।
हो जाते इनके अधिकारी।
।भूल कर भी यह लो जान।।
, , हे तरू महान। ।
फल फूल समर्पित हे जन को।
हर अंग समर्पित हे सबको। ।
करते सोयम समर्पित हे सबको।
किन्तु दुख भूल करे जन कल्याण। ।
,,हे तरू महान। ।
भीषण ग्रीष्म आप सहाय।
शीत में तुम हो सुखमयी।
फिर क्यो खंजर जाये चलाये। ।
विन आसू ले हरिनाम। ।
,,,हे तरू महान। ।
ऋतु ग्रीष्म में तपती।
देख दशा जग की। ।
करते जब यह पुकार।
देते मेघ इन्हे बरसा का परिधान। ।
,,,,,हे विटप महान।।
माना इतने है उपकारी।
आती क्यो इनकी बारी। ।
आओ सदा करे इनका गुणगान।
हर मुश्किल का यह समाधान।।
,,,,,हे विटप महान।।।।।।