“उन दिनों को कोई कैसे भुलाए”
वक्त का अंदाजा,कोई कैसे लगाएं।
उन दिनों को,कोई कैसे भुलाए ।
याद आते हैं,वह दिन ।
जो बीते हर पल,सखियों के संग।
वो हंसना हंसाना ,वो रोना रुलाना।
वो रूठना मनाना ,काश मेरे कहने से वक्त यहीं ठहर जाएं।
उन दिनों को, कोई कैसे भुलाए ।
टीचर की मीठी सी डांट ,वह सखियों की प्यारी सी तकरार।
होली में रंग, इक – दूसरे को लगाएं।
दिवाली में साथ, दिए जलाएं ।
उन दिनों को कोई ,कैसे भुलाए।
वो नाचना ,वो गाना,हर पल साथ रहने का ढूंढे बहाना
टीचर हमें डांटे ,हम फिर भी करें बातें।
सारे दिन, मौज मस्ती में काटे।
पढ़ने के वक्त, इक – दूसरे का मुंह हम ताके।
स्कूल की घंटी ,हर पल हमें बुलाए।
उन दिनों को, कोई कैसे भुलाए।